Bhishma Ashtami 2025: हर साल माघ महीने में भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। यह पर्व महाभारत के महान पात्र या योद्धा भीष्म पितामह की पुण्यतिथि पर मनाया जाता है। इस शुभ तिथि पर बाणों की शैय्या पर विश्राम कर रहे भीष्म पितामह ने अपने प्राण का त्याग किया था। यही वजह है कि, हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी मनाई जाती है।
धार्मिक मत है कि माघ अष्टमी पर भीष्म पितामह के निमित्त पितरों का तर्पण करने से व्यक्ति विशेष को शुभ फल प्राप्त होता है। इस दिन व्यक्ति अपने पितरों का भी तर्पण कर सकते हैं। इसे एकोदिष्ट श्राद्ध भी कहा जाता है। एकोदिष्ट श्राद्ध कोई भी व्यक्ति कर सकता है। एकोदिष्ट श्राद्ध करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। तो चलिए इसके बारे में विस्तार से जानते है।

कब मनाया जायेगा भीष्म अष्टमी ?
हिन्दू पंचांग के मुताबिक, 5 फरवरी 2025 को जिस दिन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी प्रयागराज महाकुंभ 2025 में संगम में स्नान कर पूजा अर्चना कर सकते हैं। उस दिन माघ शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि है, इस तिथि को भीष्म अष्टमी के रूप में जाना जाता है।
- माघ शुक्ल अष्टमी तिथि का आरंभः 05 फरवरी 2025 को सुबह 02:30 बजे (यानी 4 फरवरी की देर रात)
- माघ शुक्ल अष्टमी तिथि समापनः 06 फरवरी 2025 को सुबह 12:35 बजे (यानी 5 फरवरी की देर रात)
- उदया तिथि में माघ शुक्ल अष्टमी यानी भीष्म अष्टमीः बुधवार 5 फरवरी 2025 को
- भीष्म अष्टमी पर मध्याह्न का समयः सुबह 11:35 बजे से दोपहर 01:47 बजे तक
- मध्याह्न अवधिः करीब 02 घंटे 12 मिनट
क्यों मनाया जाता है भीष्म अष्टमी ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में गम्भीर रूप से घायल होने के पश्चात् भी भीष्म पितामह ने अपने वरदान के कारण अपनी देह का त्याग नहीं किया। उन्होंने अपनी देह त्यागने के लिये शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा की। हिन्दु मान्यता के अनुसार, सूर्यदेव वर्ष में आधे समय दक्षिण दिशा में चले जाते हैं, जो अशुभ समयावधि मानी जाती है।
यही वजह है कि सभी प्रकार के शुभ कार्यों को इस समयावधि के समाप्त होने तक स्थगित कर दिया जाता है। जब सूर्यदेव उत्तर दिशा में वापस आने लगते हैं। तब इन शुभ कार्यों का आयोजन किया जाता है । भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये माघ शुक्ल अष्टमी को चुना, क्योंकि इस समय तक सूर्यदेव उत्तर दिशा अथवा उत्तरायण में वापस जाने लगे थे। इस दिन लोग भीष्म पितामह के लिये एकोदिष्ट श्राद्ध करते हैं।
भीष्म अष्टमी का महत्व
भीष्म अष्टमी का व्रत रखने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। इस दिन जल, कुश और तिल से भीष्म पितामह का तर्पण किया जाता है। यह तारीख उनकी पुण्यतिथि के रूप में मनाई जाती है और एकोदिष्ट श्राद्ध का विशेष महत्व होता है। जो लोग अपने पिता को खो चुके हैं, वे भीष्म पितामह के नाम पर श्राद्ध अनुष्ठान करते हैं।
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